08 May, 2005

मुक्तक

जिस पल मुझको दर्द मिला है
वह पल ही वरदान हो गया
मेरी आँखों के पानी का
गंगाजल—सा मान हो गया ।।
***


आज लेकर अश्रु चंचल दो नयन में,
प्रणय देवी द्वार पर मैं आ गया हूँ
चाहता है मन नहीं वरदान मेरा
दर्द मुझको दर्द को मै भा गया हूँ ।।
***


दो मुझे पीड़ा सहन करता जाऊँगा
दर्द में भरता जाऊंगा
दर्द से नाता जुड़ा मेरा जन्म से
मरण तक उसको निभाता जाऊंगा ।।
***


फूल कांटों में पले तो फूल है
आदमी युगों से कर रहा भूल है
कह रहा वह जिस रूप को, जिंदगी
देख लो उड़ती हुई सी धूल है ।।
***

:: -तेजेश्वर मिश्र

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